चिल्का झील उड़ीसा प्रदेश के समुद्री अप्रवाही जल में बनी एक झील है। यह भारत की सबसे बड़ी एवं विश्व की दूसरी सबसे बड़ी समुद्री झील है। इसको चिलिका झील के नाम से भी जाना जाता है। यह एक अनूप है एवं उड़ीसा के तटीय भाग में नाशपाती की आकृति में पुरी जिले में स्थित है। यह 70 किलोमीटर लम्बी तथा 30 किलोमीटर चौड़ी है। यह समुद्र का ही एक भाग है जो महानदी द्वारा लायी गई मिट्टी के जमा हो जाने से समुद्र से अलग होकर एक छीछली झील के रूप में हो गया है। दिसम्बर से जून तक इस झील का जल खारा रहता है किन्तु वर्षा ऋतु में इसका जल मीठा हो जाता है। इसकी औसत गहराई 3 मीटर है।
इस झील के पारिस्थितिक तंत्र में बेहद जैव विविधताएँ हैं। यह एक विशाल मछली पकड़ने की जगह है। यह झील 132 गाँवों में रह रहे 150,000 मछुआरों को आजीविका का साधन उपलब्ध कराती है।
इस खाड़ी में लगभग 160 प्रजातियों के पछी पाए जाते हैं। कैस्पियन सागर, बैकाल झील, अरल सागर और रूस, मंगोलिया, लद्दाख, मध्य एशिया आदि विभिन्न दूर दराज़ के क्षेत्रों से यहाँ पछी उड़ कर आते हैं। ये पछी विशाल दूरियाँ तय करते हैं। प्रवासी पछी तो लगभग 12000 किमी से भी ज्यादा की दूरियाँ तय करके चिल्का झील पंहुचते हैं।
1981 में, चिल्का झील को रामसर घोषणापत्र के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय महत्व की आद्र भूमि के रूप में चुना गया। यह इस मह्त्व वाली पहली पहली भारतीय झील थी।
एक सर्वेक्षण के मुताबिक यहाँ 45% पछी भूमि, 32% जलपक्षी और 23% बगुले हैं। यह झील 14 प्रकार के रैपटरों का भी निवास स्थान है। लगभग 155 संकटग्रस्त व रेयर इरावती डॉल्फ़िनों का भी ये घर है। इसके साथ ही यह झील 37 प्रकार के सरीसृपों और उभयचरों का भी निवास स्थान है।
उच्च उत्पादकता वाली मत्स्य प्रणाली वाली चिल्का झील की पारिस्थिकी आसपास के लोगों व मछुआरों के लिये आजीविका उपलब्ध कराती है। मॉनसून व गर्मियों में झील में पानी का क्षेत्र क्रमश: 1165 से 906 किमी2 तक हो जाता है। एक 32 किमी लंबी, संकरी, बाहरी नहर इसे बंगाल की खाड़ी से जोड़ती है। सीडीए द्वारा हाल ही में एक नई नहर भी बनाई गयी है जिससे झील को एक और जीवनदान मिला है।
लघु शैवाल, समुद्री घास, समुद्री बीज, मछलियाँ, झींगे, केकणे आदि चिल्का झील के खारे जल में फलते फूलते हैं।
इतिहास :
कुछ प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, चिल्का को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए एक प्रमुख बंदरगाह माना जाता था। प्रसिद्ध चीनी यात्री चिल्का झील के किनारे छत्रगढ़ में स्थित एक बंदरगाह के पार गया। आगे की खुदाई से पता चला कि चिल्का झील एशिया की ओर नौकायन व्यापारिक जहाजों के लिए एक गहरी और खुली खाड़ी और एक महत्वपूर्ण बंदरगाह और आश्रय है।
इसकी नाशपाती के आकार की संरचना के कारण, चिल्का झील को गहरे सूखे बंदरगाह के रूप में इस्तेमाल होने से रोका जा रहा था। किंवदंती ने यह भी साबित किया कि पुरी के अमीर और पवित्र शहर को बर्खास्त करने के लिए एक 4 वीं शताब्दी के समुद्री डाकू राजा रक्ताबाहु (या लाल हाथ) को समुद्र के पार यात्रा के लिए माना जाता था। हमले के डर से पुरी के निवासियों ने इस क्षेत्र को छोड़ दिया। बाद में राजा को एहसास हुआ कि उसे समुद्री ज्वार से गुमराह किया गया था, लेकिन दुर्भाग्य से उसकी टुकड़ी के साथ ज्वार में तस्करी की जा रही थी। इस प्रकार, इस क्षेत्र को चिल्का झील के रूप में विकसित किया गया है जो वन्यजीव अभियान के साथ आज तक इस तरह के पौराणिक महत्व का प्रतीक है।
भूविज्ञान :
यह झील बदलते माहौल वाले वातावरण में एक ज्वारनदमुखी डेल्टा प्रकार की अल्पकालिक झील है। भूवैज्ञानिक अध्धयनों के अनुसार की झील की पश्चिमी तटरेखा का विस्तार अत्यंतनूतन युग में हुआ था जब इसके उत्तरपूर्वी क्षेत्र समुद्र के अंदर ही थे। इसकी तटरेखा कालांतर में पूर्व की तरफ़ सरकने के प्रमाण इस बात से मिल जाते हैं कि कोर्णाक सूर्य मंदिर जिसका निर्माण कुछ साल पहले समुद्र तट पर हुआ था अब तट से लगभग 3 कि॰मी॰ (2 मील) दूर आ गया है।
चिल्का झील का जल निकासी कुण्ड पत्थर, चट्टान, बालू और कीचण के मिश्रण के आधार से निर्मित है। इसमें व्हिन्न प्रकार के अवसादी कण जैसे चिकनी मिट्टी, कीचड़, बालू, बजरी और शैलों के किनारे है लेकिन बड़ा हिस्सा कीचण का ही है। हर वर्ष लगभग 16 लाख मीट्रिक टन अवसाद चिल्का झील के किनारों पर दया नदी और अन्य धाराओं द्वारा जमा की जाती हैं।
एक निराधार कल्पना के अनुसार पिछले 6,000–8,000 वर्षों के दौरान विश्वव्यापी समुद्री स्तर में बढोत्तरी हुई। 7,000 साल पहले इस प्रक्रिया में आई कमी की वजह से झील के दक्षिणी क्षेत्रों में पर रेतीले तटों का निर्माण हुआ। समुद्र स्तर में बढोत्तरी के साथ साथ तट का विस्तार होता रहा और इसने पूर्वोतर में समुद्र की तरफ बढते हुए चिल्का की समुद्री भूमि का निर्माण किया। इस समुद्री भूमि के दक्षिण-पश्चिमी छोर पर मिले एक जीवाश्म बताता है कि झील का निर्माण 3,500–4,000 वर्ष पूर्व हुआ होगा। झील के उत्तर में तट की दिशा में तीखे बदलाव, तट पर बालू को बहाती तेज हवाएँ, लंबा त्टीय मोड़ (समुद्रतटवर्ती बहाव), विभिन्न उपक्षेत्रों में मजबूत ज्वार व नदी तरंगों की उपस्थिति और अनुपस्थिति इस समुद्री भूमि के विकास का कारण हैं।
दक्षिणी क्षेत्र में वर्तमान समुद्री स्तर से 8 मी॰ (26 फीट) की उंचाई पर स्थित कोरल की सफ़ेद पट्टीयाँ यह दर्शाती हैं कि यह क्षेत्र कभी समुद्र के अंदर था और वर्तमान गहराई से कहीं ज्यादा गहरा था। बाहरी घेरेदार रेतीली भूमि पट्टी के क्रमविकास का घटनाक्रम यहाँ पाए जाने वाले खनिज पदार्थों के अध्धयन से पता किया गया है। यह अध्धयन झील की सतह के 16 नमूनों पर किया गया। नमूनों की मात्रा उपरी सतह के 40 और निचली सतह के 300 वर्ष तक पुराने होने के क्रम में 153 ± 3 mग्रे और 2.23 ± 0.07 ग्रे के बीच थी।
भूगोल और स्थलाकृति :
चिल्का झील विशाल क्षेत्रों वाली कीचड़दार भूमि व छिछले पानी की खाड़ी है। पश्चिमी व दक्षिणी छोर पूर्वी घाट की पहाड़ियों के आंचल में स्थित हैं।
तमाम नदियाँ जो झील में मिट्टी व कीचड़ ले आती है झील के उत्तरी छोर को नियंत्रित करती हैं। बंगाल की खाड़ी में उठने वाली उत्तरी तरंगो से एक 60 कि॰मी॰ (37 मील) लंबा घेरेदार बालू-तट जिसे रेजहंस,[17] कहा जाता है, बना और इसके परिणाम स्वरूप इस छिछली झील और इसके पूर्वी हिस्से का निर्माण हुआ। एक अल्पकालिक झील की वजह से इसका जलीय क्षेत्र गर्मियों में 1,165 कि॰मी2 (449.8 वर्ग मील) से लेकर बारिश के मौसम में 906 कि॰मी2 (349.8 वर्ग मील) तक बदलता रहता है।
इस झील में बहुत सारे द्वीप हैं। संकरी नहरों से अलग हुए बड़े द्वीप मुख्य झील और रेतीली घेरेदार भूमि के मध्य स्थित हैं। कुल 42 कि॰मी2 (16 वर्ग मील) क्षेत्रफल वाली नहरें झील को बंगाल की खाड़ी से जोड़ती हैं। इसमें छ: विशाल द्वीप हैं परीकुड़, फुलबाड़ी, बेराहपुरा, नुआपारा, नलबाणा, और तम्पारा। ये द्वीप मलुद के प्रायद्वीप के साथ मिलकर पुरी जिला के कृष्णाप्रसाद राजस्व क्षेत्र का हिस्सा हैं।
झील का उत्तरी तट खोर्धा जिला का हिस्सा है व पश्चिमी तट गंजाम जिला का हिस्सा है। तलछटीकरण के कारण रेतीले तटबंध की चौड़ाई बदलती रहती है और समुद्र की तरफ़ मुख कुछ समय के लिये बंद हो जाता है। झील के समुद्री-मुख की स्थिति भी तेजी से उत्तर-पूर्व की तरफ खिसकती रहती है। नदी मुख जो 1780 में 1.5 कि॰मी॰ (0.9 मील) चौड़ा था चालीस साल बद सिर्फ़ .75 कि॰मी॰ (0.5 मील) जितना रह गया। क्षेत्रीय मछुआरों को अपना रोजगार क्षेत्र बचाने व समुद्र में जाने के लिये झील के मुख को खोद कर चौड़ा करते रहना पड़ता है।
पानी की गहराई सूखे मौसम में 0.9 फीट (0.3 मी॰) से 2.6 फीट (0.8 मी॰) और वर्षा ऋतु में 1.8 मी॰ (5.9 फीट) से 4.2 मी॰ (13.8 फीट) तक बदलती रहती है। समुद्र को जाने वाली पुरानी नहर की चौड़ाई जिसे मगरमुख के नाम से जाना जाता है अब 100 मी॰ (328.1 फीट) है। झील मुख्यत: चार क्षेत्रों में बंटी हुई है, उत्तरी, दक्षिणी, मध्य व बाहरी नहर का इलाका। एक 32 कि॰मी॰ (19.9 मील) लंबी बाहरी नहर झील को बंगाल की खाड़ी से अराखुड़ा गाँव में जोड़ती है। झील का आकर किसी नाशपाती की तरह है और इसकी अधिकतम लंबाई 64.3 कि॰मी॰ (40.0 मील) और औसत चौड़ाई 20.1 कि॰मी॰ (12.5 मील) बनी रहती है।
जलविज्ञान :
तीन जल वैज्ञानिक उप-प्रणालियों को झील के जल विज्ञान को नियंत्रित करते हैं। भूमि आधारित प्रणाली में उत्तरी किनारे पर महानदी नदी, पश्चिमी तरफ से 52 नदी चैनल और पूर्वी तरफ बंगाल की खाड़ी के वितरण शामिल हैं। महानदी नदी की तीन दक्षिणी शाखाओं में से दो, जो कटक में स्थित हैं, झील को खिलाती हैं। झील में कुल ताजे पानी के प्रवाह का 61% (850 क्यूबिक मीटर प्रति सेकंड (30,000 घन फुट / सेकंड)) इन दो शाखाओं द्वारा योगदान दिया जाता है।
दूसरी जल निकासी प्रणाली जो गैर-बारहमासी खातों के लिए 39% (536 घन मीटर प्रति सेकंड (18,900 फीट फुट / सेकंड)) है। इस जल निकासी प्रणाली की महत्वपूर्ण नदियाँ कंसारी, कुसुमी, जंजीरा और तारिमी नदियाँ हैं। झील पर वार्षिक कुल सतह के मीठे पानी के इनपुट का अनुमान 1.76 घन मीटर (1,430,000 एकड़) है, जिसमें झील पर प्रत्यक्ष वर्षा 0.87 घन मीटर (710,000 एकड़) का योगदान है, सभी अंतर्देशीय प्रणाली लगभग 0.375 मिलियन का वार्षिक प्रवाह विस्थापित करती हैं। ताज़े पानी का सी मीटर (304 एकड़) जो झील में 13 मिलियन मीट्रिक टन गाद ले जाने का अनुमान है। उत्तर पूर्व में एक चैनल झील को बंगाल की खाड़ी से जोड़ता है।
एक उष्णकटिबंधीय मानसून जलवायु झील के जल निकासी बेसिन क्षेत्र पर प्रबल होती है। झील जून-सितंबर और नवंबर से दिसंबर के दौरान क्रमशः 1,238.8 मि23मी.8 (48.77 इंच) की औसत वर्षा के साथ 72 बारिश वाले दिनों में दक्षिण-पश्चिम और उत्तर-पूर्वी मानसून का अनुभव करती है। अधिकतम तापमान 39.9 ° से। (103.8 ° फ़ै) और न्यूनतम तापमान 14 ° से। (57.2 ° फ़ै) दर्ज किया गया है। हवा की गति 5.3 से 16 मीटर (17 फीट 52 फीट) / घंटा बदलती रहती है, दक्षिण-पश्चिम मानसून के प्रभाव के कारण दक्षिण और पश्चिम दिशा से और बाकी महीनों के दौरान उत्तर और उत्तर पूर्व दिशा से।
जल व अवसाद की गुणवत्ता :
चिल्का विकास प्राधिकरण (सीडीए) पानी की गुणवत्ता माप का एक संगठित प्रणाली की स्थापना की और लिमनोलॉजी की तहकीकात, झील के पानी की निम्नलिखित भौतिक-रासायनिक विशेषताओं को बतलाते है।
- झील का पानी क्षारीय है;– pH की मात्रा 7.1 से 9.6 के बीच है जिससे कुल क्षारीयता लवणता या खारेपन के समान हो जाती है। झील के दक्षिणी भाग में रम्भा के पास सबसे अधिक क्षारीयता मापी गई है।
- क्रोड़मण्डलीय सर्वेक्षण उत्तरी भाग में छिछली गहराई दर्शाता है। यहाँ एक बड़े भाग में गहराई 1.5 मी॰ (5 फीट) से भी कम है जबकि दक्षिणी भाग में गहराई सबसे ज्यादा 3.9 मी॰ (12.8 फीट) तक मापी गई है।
- उपरी पानी के अवसाद व कीचण में मिले रहने के कारण यहाँ उच्च गंदलापन है। स्पष्टता नाप में दृष्यता 9 और 155 से॰मी॰ (0.30 और 5.09 फीट) के बीच पायी गयी है।
- झील में क्षारीय स्तरों में बड़े अस्थायी व स्थानिक बदलाव ताजे पानी के निकलते रहने, वाष्पीकरण, वायु दिशाएँ व समुद्री पानी के ज्वार के साथ अंदर आने से आते रहते है। इस झील की क्षारीयता दया नदी के मुहाने पर 0 हिस्से/हज़ारसे बाहर जाने वाली नहरों में 42 हिस्से/हज़ार तक की अत्यधिक नमकीन मात्रा तक पाई गयी है।
- पानी में घुलनशील ऑक्सीजन की मात्रा 3.3–18.9 mg/l तक पायी गई है।
- फॉस्फेट फॉस्फोरस (0–0.4 ppm), नाइट्रेट नाइट्रोजन (10–60 ppm) और सिलिकेट्स (1–8 ppm) उत्तर और उत्तरपूर्व में ज्यादा है क्योंकि यहाँ विभिन्न नदियाँ सिल्ट डालती हैं।
- झील को क्षारीय मात्रा के अनुसार मुख्य रूप से ४ भागों में विभाजित किया गया है। जिन्हें मुख्यत: दक्षिणी, मध्य, उत्तरी व बाहरी नहरें के नाम से जाना जाता है। मॉनसून के दौरान ज्वार की वजह से आने वाले समुद्री पानी की भारी मात्रा से उतपन्न क्षारीयता को उत्तरी व मध्य क्षेत्रों में भारी बारिश से आये ताजे पानी की भारी मात्रा बराबर कर देती है। दक्षिणी भाग में ताजे पानी के ज्यादा ना पंहुचने की वजह से मॉनसून के दौरान भी क्षारीयता बनी रहती है। हालांकि मॉनसून के बाद के मौसम में उत्तरी हवाओं के चलने से दक्षिणी भाग में क्षारीयता कुछ कम हो जाती है। यह हवाएँ पानी को झील के अन्य भागों से मिलाने का काम करदेती हैं। गर्मियों में झील का पानी का स्तर नीचे होइता है, इसकि वजह से समुद्री पानी बाहरी नहरों से ज्यादा आता है और गर्मियों में क्षारीयता बढ जाती है।
अवसादन :
तटपर तटीय खिसकाव की वजह से आने वाले प्रतिकूल ज्वारीय लेनदेन की वजह से पानी के बहाव में कमी और झील के मुहाने की अवस्थिति में हर वर्ष लगातार बदलाव आ रहा है। इसकी वजह से तलछटी में जमा होने वाली गाद की अनुमानित मात्रा 100,000 मीट्रिक टन है। इन प्रतिकूल प्रभावों की वजह से व्यापक सुधारक कार्वाइयों की आवश्यकता है।
झील के विभिन्न भागों में अवसाद की विभिन्न मात्राएँ पायी गयीं। उत्तरी भाग में 7.6 मिलीमीटर (0.30 इंच)/वर्ष, मध्य भाग में 8.0 मिलीमीटर (0.31 इंच)/वर्ष और दक्षिणी भाग में 2.8 मिलीमीटर (0.11 इंच)/वर्ष के माप मिले। अवसाद के जमा होने की मात्रा दक्षिणी भाग की तुलना में उत्तरी व मध्य भाग में ज्यादा पाई गयी।
वनस्पति :
चिल्का झील को पक्षी-प्रेमियों और पक्षीविदों के लिए वास्तविक स्वर्ग के रूप में माना जा रहा है, क्योंकि पूरे क्षेत्र में बड़ी संख्या में जलीय पक्षी पसंद करते हैं, जो कि प्रवासी गणनाओं के लिए सर्दियों में अधिमानतः आते हैं। प्रमुख प्रजातियां जिन्हें सफेद बेलदार समुद्री चील, ग्रेलाग गीज़, बैंगनी मूरहेन, राजहंस जेकाना और बगुले के रूप में देखा जा सकता है। चिल्का झील पक्षी अभयारण्य भी दुनिया में राजहंस के सबसे बड़े प्रजनन स्थानों में से एक है।
एवी-फ़नल प्रजातियों के अलावा, इस क्षेत्र में विभिन्न जंगली जानवरों जैसे ब्लैकबक, गोल्डन जैकाल, चित्तीदार हिरण और हाइना भी हैं। चिल्का झील जलीय प्रजातियों में बहुत समृद्ध है क्योंकि इसके बेसिन क्षेत्र में क्रस्टेशियन, मछली और कई अन्य समुद्री जीवों की लगभग 160 विभिन्न प्रजातियां हैं, जिनमें प्रसिद्ध चिल्का डॉल्फिन भी शामिल है। स्थानीय लोग अपनी आजीविका चलाने के लिए महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में झींगा, मैकेरल और केकड़े मछली पकड़ने पर निर्भर हैं। वन्यजीवों की झलक देखने के लिए, झील में मछली पकड़ने के लिए कई नावें देखी जा सकती हैं। नीलगिरि बायोस्फीयर रिज़र्व के पास भारत में दूसरे सबसे बड़े पचय्मर नंबर हैं, जिससे विशेष रूप से शुष्क मौसम में हाथियों की बड़ी संख्या को पकड़ने के अवसर मिलते हैं।
निवासियों और प्रवासी पक्षियों के अलावा, चिलिका वन्यजीव अभयारण्य ब्लैकबक, चित्तीदार हिरण, गोल्डन जैकल्स, हाइनास और कई और अधिक का घर है। जलीय वन्यजीवों की उपस्थिति के लिए समृद्ध रूप से प्रसिद्ध होने के नाते, चिल्का झील अभयारण्य में प्रॉन, डॉल्फिन, क्रैब, क्रस्टेशियंस और लिम्बलेस छिपकली भी हैं। Acentrogobius Griseus, Arius, Alepes Djedaba और Elops Machnata सहित मछलियों की 225 से अधिक प्रजातियाँ यहाँ पाई जाती हैं।
नंदन कानन में फूल :
चिल्का झील उड़ीसा में इको-टूरिज्म के लिए सबसे लोकप्रिय स्थल है। इस क्षेत्र में विदेशी वन्यजीवों की उपस्थिति के अलावा, झील और इसके आसपास के क्षेत्र में जलीय पौधों के साथ-साथ गैर-जलीय पौधों की प्रचुरता के साथ समृद्ध पुष्प प्रणाली है। हाल के पर्यावरण सर्वेक्षण में चिल्का झील और उसके आसपास पौधों की 710 से अधिक प्रजातियों की उपस्थिति का पता चला। चिल्का झील को रामसर साइट के रूप में देखने के लिए सभी रूपों की कई दुर्लभ और लुप्तप्राय प्रजातियों सहित वनस्पतियों और जीवों की इतनी विशाल विविधता मुख्य कारण रही है।
रुचि के स्थान :
- बर्ड आइलैंड: पक्षीविदों को अपने प्राकृतिक आवास में पक्षियों को देखने के लिए एक आदर्श स्थल।
- नालबाना: यह वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के तहत कुछ नामित पक्षी अभयारण्यों में से एक है। नालबाना झील के केंद्र में एक बड़ा द्वीप है जहां सर्दियों के दौरान, निवासी और प्रवासी एवियन का एक बड़ा आलीशान पक्षी-दर्शकों के लिए एक पूर्ण बंजी अनुभव के रूप में साबित होता है। यह द्वीप मानसून के महीनों में पूरी तरह से जलमग्न हो जाता है।
- मंगलाजोडी: पूर्व में, मंगलाजोडी को शिकारियों के गांव के रूप में जाना जाता था, क्योंकि गांव के निवासी पूरी तरह से अवैध गतिविधियों में शामिल थे; लेकिन बाद में, जागरूकता में, गांव को आज एक समुदाय के रूप में माना जाता है जो वन्यजीव उद्यम के स्वामित्व में है। समुदाय मंगलाजोडी इकोटूरिज्म द्वारा समर्थित है।
- कालिजई द्वीप: इस द्वीप को आदर्श रूप से देवी कालीजाई का निवास माना जा रहा है। तीर्थयात्रियों ने जनवरी में मकर मेला (मकर संक्रांति के समय) के दौरान यहां देवी की आज्ञा का पालन किया। स्थानीय लोगों की प्राचीन मान्यता यह बताती है कि काली और उसकी बहन (कुछ साल बाद) नाम की एक लड़की द्वीप में डूब गई थी, जब वह काली की तलाश में द्वीप पर आई थी। स्थानीय लोग कालिजई द्वीप क्षेत्र में अपने रोने की आवाज सुनते थे। लेकिन जब मंदिर का निर्माण किया गया था तो बहनों का रोना रात में नहीं सुना गया था जो इसके लिए कुछ शुभ और पवित्र कारण साबित हुए। यह क्षेत्र बरकुल से आसानी से पहुँचा जा सकता है।
- इस क्षेत्र का प्रभावशाली हिस्सा यह है कि मोर के झुंड भक्तों के साथ यहां घूमते हैं। पहले मछुआरे गहरे समुद्र में जाने से पहले मंदिर जाते थे, लेकिन आजकल, यह सिर्फ एक और पर्यटन स्थल है।
- सतपदा: यह स्थान डॉल्फिन बिंदु के करीब है, जहाँ गंभीर रूप से लुप्तप्राय इरवाडी डॉल्फ़िन और बोतल-नाल वाली डॉल्फ़िन देखी जा सकती हैं। चिल्का दुनिया के एकमात्र 2 लैगून में से एक है, जहां इरावाडी डॉल्फ़िन को देखा जा सकता है।
- ब्रह्मपुत्र: यह स्थान अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है और पर्यटकों के लिए महान पिकनिक स्थलों के लिए कार्य करता है।
- ब्रेकफास्ट द्वीप: रंभा से 20 मिनट की नाव की सवारी पर्यटकों को चिल्का झील क्षेत्र के इस अद्भुत द्वीप तक ले जाएगी। इस द्वीप का नाम इसलिए रखा गया है क्योंकि पर्यटक रंभा के ओटीडीसी पन्थनिवास से नाश्ता पैक करते हैं और यहां के प्राचीन परिवेश में रखते हैं। बीकन द्वीप और हनीमून द्वीप नाश्ता द्वीप के पास के क्षेत्र में अन्य आकर्षण हैं।
- रम्भा सबसे आदर्श स्थान है जहाँ से प्रसिद्ध चिल्का झील की खोज की जा सकती है और यह स्थान द्वीपों पर जाने और हजारों पक्षियों को देखने के लिए लगातार नाव यात्राएं भी करता है।
आस-पास के आकर्षण / भ्रमण :
- सरकार कॉलेज ऑफ आर्ट्स एंड क्राफ्ट : बालाकोट से लगभग 25 किमी और रंभा से 12 किमी दूर खल्लिकोट में स्थित है, यह आर्ट गैलरी खल्लिकोट के पूर्ववर्ती राजा के महल में स्थित है। हरे-भरे पहाड़ों के साथ सभी पक्षों से घिरे, यह कुछ सुंदर दृश्य पेश करता है और कई प्रसिद्ध भारतीय समकालीन चित्रकारों को इसके पूर्व छात्रों के रूप में चित्रित करता है। अंदर मौजूद आर्ट गैलरी में उड़ीसा की संस्कृति को दर्शाती कुछ खूबसूरत पेंटिंग हैं।
- निर्मलझरा : यह एक बारहमासी धारा है जिसे विभिन्न तालाबों में डाला गया है और कला महाविद्यालय के बहुत पास स्थित खलिकोट में स्थित है। 1676 में निर्मित, यह धारा कई मंदिरों से भी रोशन है। साहसी व्यक्ति यहां के तालाबों में से एक में स्नान कर सकते हैं।
- बानपुर : भगवती मंदिर और बाजारों के लिए जाना जाता है, बानपुर क्षेत्र हैंग-आउट और खरीदारी के लिए जाना जाता है।
- नारायणी : बालुगाँव से लगभग 15 किमी दूर, पूर्वी घाट में प्राकृतिक परिवेश में मंदिर है।
- उड़िया लोग इसे बहुत भाग्यशाली मानते हैं यदि उसी दिन कालिजई मंदिर, भगवती मंदिर और नारायणी मंदिर का दौरा किया जाए।
- सालिया बांध : यह बांध सालिया नदी पर बनाया जा रहा है और आश्चर्यजनक स्थानों के बीच स्थित है। रंभा से लगभग 25 किमी और बराकुल से 15 किमी दूर, सलिया बांध, दृष्टि-दर्शन और कुछ साहसिक अवकाश यात्राओं के लिए सबसे योग्य स्थान है।
- गोपालपुर-ऑन-सी : यह ओडिशा के गंजम जिले में एक आश्चर्यजनक समुद्र तट रिसॉर्ट है। यह व्यापार के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक व्यस्त समुद्री बंदरगाह था, लेकिन आज अकेला-साधक और शांति की तलाश कर रहे लोगों के लिए सबसे शांत जगह है। यह क्षेत्र उड़ीसा के मंदिर शहर के सभी हलचल और हलचल से काफी मुक्त है और यहां के सुंदर और समुद्री सौंदर्य के आकर्षण हैं। गोपालपुर-ऑन-सी आज भारत में सबसे अग्रणी समुद्र तट रिसॉर्ट्स में से एक है।
- पुरी : सबसे लोकप्रिय यह स्थान जगन्नाथ मंदिर में प्रसिद्ध रथ यात्रा के लिए जाना जाता है जो असद (जून और जुलाई) के महीने में आयोजित किया जाता है और भगवान जगन्नाथ के रथ को सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए ले जाया जाता है। बंगाल की खाड़ी में स्थित, पुरी भारत के सबसे पवित्र स्थानों में से एक है और जबरदस्त आकर्षक समुद्री तटों से संपन्न है।
चिल्का झील में सफारी :
चिल्का झील अभयारण्य पिकनिक स्पॉट के लिए पूरी तरह से जाना जाता है; जहां पर्यटक अपने अवकाश के क्षणों को बिताने के लिए आते हैं, ताकि समुद्री वन्यजीवों का आनंद लिया जा सके और आस-पास के क्षेत्रों और द्वीपों पर कुछ रोमांचक फ्रीक-आउट बनाया जा सके। इसलिए इस क्षेत्र में सफारी उपलब्ध नहीं है, लेकिन हाँ, यदि आप वास्तव में झील या आस-पास के स्थानों में प्रभावशाली जलीय जीवों को पकड़ना चाहते हैं, तो नौका विहार का एक अतिरिक्त मज़ा हो सकता है, जो सूर्योदय से सूर्यास्त के दौरान पूरे वर्ष में अनुभव किया जा सकता है। इस क्षेत्र में एक विस्तृत जलीय सफारी के लिए, पर्यटक जंगल में पूरी तरह से सैर कर सकते हैं।
यात्रा की जानकारी :
- हवाई मार्ग द्वारा: निकटतम हवाई अड्डा भुवनेश्वर 120 किमी दूर स्थित है जहाँ से टैक्सी, ट्रेन और बसें झील की ओर उपलब्ध हैं।
- ट्रेन द्वारा: पर्यटक हावड़ा-चेन्नई ट्रैक पर बालूगाँव में निकटतम रेलवे स्टेशन पा सकते हैं। झील से बालूगाँव के लिए बसें उपलब्ध हैं।
- सड़क मार्ग से: चिल्का झील का एक हिस्सा NH5 और हावड़ा-चेन्नई ट्रेन ट्रैक से दिखाई देता है। कई बसें भुवनेश्वर (बारामुंडा बस स्टेशन) और कटक (बादामबाड़ी बस स्टेशन) से दिन भर में Balugaon तक चलती हैं, OSRTC बसों (यानी राज्य द्वारा संचालित बसों) में अक्सर और सबसे तेज़ सेवाएं होती हैं। यह भुवनेश्वर से 2 घंटे की यात्रा है। वहाँ से, एक को बरकुल या रंभा तक पहुँचने के लिए एक टैक्सी या ऑटो-रिक्शा किराए पर लेना पड़ता है (रंभा के मामले में, यात्री केशपुर में आगे बढ़ सकते हैं, जो बालूगाँव से आगे है, और वहाँ से एक ऑटो-रिक्शा किराए पर लेते हैं)। पुरी से सतपदा दैनिक स्थानीय बसों द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। पर्यटक सतपदा को देखने के लिए पुरी से ओटीडीसी दिवस का दौरा कर सकते हैं। हालांकि, सतपद भुवनेश्वर से इतनी अच्छी तरह से जुड़ा नहीं है और वहां पहुंचने के लिए टैक्सियों को किराए पर लेना पड़ता है।
यह मौसम पूरे साल गर्म रहता है, इसलिए बरसात के मौसम को छोड़कर जून से सितंबर के दौरान इस जगह पर कोई भी आ सकता है। हालांकि, सबसे अच्छा समय, अक्टूबर से मार्च तक है, जब झील में प्रवासी पक्षियों की भीड़ होती है, आमतौर पर कम से कम 50-70 प्रजातियां।