यह भारत का एक प्रमुख राष्ट्रीय उद्यान हैं। मध्य प्रदेश अपने राष्ट्रीय पार्को और जंगलों के लिए प्रसिद्ध है। यहां की प्राकृतिक सुन्दरता और वास्तुकला के लिए विख्यात कान्हा पर्यटकों के बीच हमेशा ही आकर्षण का केन्द्र रहा है। कान्हा शब्द कनहार से बना है जिसका स्थानीय भाषा में अर्थ चिकनी मिट्टी है। यहां पाई जाने वाली मिट्टी के नाम से ही इस स्थान का नाम कान्हा पड़ा। इसके अलावा एक स्थानीय मान्यता यह रही है कि जंगल के समीप गांव में एक सिद्ध पुरुष रहते थे। जिनका नाम कान्वा था। कहा जाता है कि उन्हीं के नाम पर कान्हा नाम पड़ा।
कान्हा जीव जन्तुओं के संरक्षण के लिए विख्यात है। यह अलग-अलग प्रजातियों के पशुओं का घर है। जीव जन्तुओं का यह पार्क 940वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। रूडयार्ड किपलिंग की प्रसिद्ध किताब और धारावाहिक जंगल बुक की भी प्रेरणा इसी स्थान से ली गई थी। पुस्तक में वर्णित यह स्थान मोगली, बगीरा, शेरखान आदि पात्रों का निवास स्थल है। सन् 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर के तहत इस उद्यान का 917.43 वर्ग कि.मी. का क्षेत्र कान्हा व्याघ्र संरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया गया।
कान्हा राष्ट्रीय उद्यान :
विवरण | ‘कान्हा राष्ट्रीय उद्यान’ मध्य प्रदेश राज्य में स्थित मुख्यत: एक बाघ अभयारण्य है। इस अभयारण्य में दुर्लभ बारहसिंगा भी पाया जाता है, जो सम्पूर्ण विश्व में और कहीं नहीं मिलता। |
पता | मंडला और बालाघाट मध्य प्रदेश |
स्थापना | 1935 |
कब जाएँ | 16 अक्टूबर से 30 जून |
कैसे जाएं | नागपुर अड्डा, रेलवे स्टेशन जबलपुरजंक्शन, बस अड्डा जनरल बस अड्डा |
अन्य जानकारी | अभयारण्य के पर्यटन क्षेत्र में सूर्योदय और सूर्यास्त के बीच पर्यटकों को अनुमति दी जाती है। मानसून के मौसम में 1 जुलाई से 15 अक्टूबर तक यह उद्यान बन्द रखा जाता है। |
कान्हा राष्ट्रीय उद्यान का इतिहास :
कान्हा राष्ट्रीय उद्यान मूल रूप से 1880 में गोंडवानों (अर्थात गोंडों की भूमि) का एक हिस्सा था, जो मध्य भारत की दो मुख्य जनजातियों गोंडों और बैगाओं द्वारा बसाया गया था। आज भी इन दो प्रजातियों ने इस नेशनल पार्क के बाहरी इलाके में कब्जा किया हुआ है। बाद में इन दो प्रमुख अभयारण्यों को हॉलन और बंजार क्रमशः 250 वर्ग किमी और 300 वर्ग किमी के क्षेत्रों में विभाजित किया गया है। वर्ष 1862 में कान्हा को वन प्रबंधन नियमों द्वारा बाधित कर दिया गया था, इसके बाद 1879 में इस क्षेत्र को 1949 वर्ग किमी के हिस्से में बढाकर एक आरक्षित वन घोषित कर दिया गया।
कान्हा नेशनल पार्क का इतिहास तब से और भी ज्यादा दिलचस्प हो गया जब वर्ष 1933 में कान्हा को अपने अदम्य परिदृश्य और अद्भुत उच्चभूमि सुंदरता के लिए पूरी दुनिया से सराहना मिली। वर्ष 1991 और 2001 में कान्हा राष्ट्रीय उद्यान को भारत सरकार पर्यटन विभाग ने सबसे अनुकूल पर्यटन राष्ट्रीय उद्यान के रूप में सम्मानित किया गया।
स्थिति :
यह राष्ट्रीय पार्क 940 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। यह क्षेत्र घोड़े के पैरों के आकार का है और यह हरित क्षेत्र सतपुड़ा की पहाड़ियों से घिरा हुआ है। इन पहाड़ियों की ऊंचाई 450 से 900 मीटर तक है। इसके अन्तर्गत बंजर और हेलन की घाटियां आती हैं जिन्हें पहले मध्य भारत का प्रिन्सेस क्षेत्र कहा जाता था। 1879-1910 ईसवी तक यह क्षेत्र अंग्रजों के शिकार का स्थल था। कान्हा को 1933 में अभयारण्य के तौर पर स्थापित कर दिया गया और इसे 1955 में राष्ट्रीय उद्यान् घोषित कर दिया गया। यहां अनेक पशु पक्षियों को संरक्षित किया गया है। लगभग विलुप्त हो चुकी बारहसिंहा की प्रजातियां यहां के वातावरण में देखने को मिल जाती है।
कान्हा एशिया के सबसे सुरम्य और खूबसूरत वन्यजीव रिजर्वो में एक है। बाघ का यह देश परभक्षी और शिकार दोनों के लिए आदर्श जगह है। यहां की सबसे बड़ी विशेषता खुले घास के मैदान हैं जहां काला हिरन, बारहसिंहा, सांभर और चीतल को एक साथ देखा जा सकता है। इस उद्यान मे बन्दर और चीतल का साथ मे दिखना बहुत आम बात है। बांस और टीक के वृक्ष इसकी सुन्दरता को और बढा देते हैं।
आकर्षण :
- बारहसिंगा : यह प्रजाति कान्हा का प्रतिनिधित्व करती है और यहां बहुत प्रसिद्ध है। कठिन ज़मीनी परिस्थितियों में रहने वाला यह अद्वितीय जानवर टीक और बांसों से घिरे हुए विशाल घास के मैदानों के बीच बसे हुए हैं। बीस साल पहल से बारहसिंगा विलुप्त होने की कगार पर थे। लेकिन कुछ उपायों को अपनाकर उन्हें विलुप्त होने से बचा लिया गया। दिसम्बर माह के अंत से जनवरी के मध्य तक बारहसिंगों का प्रजनन काल रहता है। इस अवधि में इन्हें बेहतर और नज़दीक से देखा जा सकता है। बारहसिंगा पाए जाने वाला यह भारत का एकमात्र स्थान है।
- जीप सफारी : जीप सफारी सुबह और दोपहर को प्रदान की जाती है। जीप मध्य प्रदेश पर्यटन विकास कार्यालय से किराए पर ली जा सकती है। कैम्प में रूकने वालों को अपना वाहन और गाइड ले जाने की अनुमति है। सफारी का समय सुबह 6 बजे से दोपहर के 12 बजने तक और दोपहर मे ही 3 बजे से शाम के 5:30 बजे तक निर्धारित किया गया है।
- बाघ दृश्य : बाघों को नजदीक से देखने के लिए पर्यटकों को हाथी की सवारी की सुविधा दी गई है। इसके लिए सीट की बुकिंग करनी होती है। इनकी सेवाएं सुबह के समय प्राप्त की जा सकती हैं। इसके लिए भारतीयों से 100 रूपये और विदेशियों से 600 रूपये का शुल्क लिया जाता है।
- पक्षी : यहां पर पक्षियों के मिलन स्थल का विहंगम दुश्य भी देख सकते है। यहां लगभग 300 पक्षियों की प्रजातियां हैं। पक्षियों की इन प्रजातियों में स्थानीय पक्षियों के अतिरिक्त सर्दियों में आने प्रवासी पक्षी भी शामिल हैं। यहां पाए जाने वाले प्रमुख पक्षियों में सारस, छोटी बत्तख, पिन्टेल, तालाबी बगुला, मोर-मोरनी, मुर्गा-मुर्गी, तीतर, बटेर, हर कबूतर, पहाड़ी कबूतर, पपीहा, उल्लू, पीलक, किंगफिशर, कठफोडवा, धब्बेदार पेराकीट्स आदि हैं।
- कान्हा संग्रहालय : इस संग्रहालय में कान्हा का प्राकृतिक इतिहास संचित है। यह संग्रहालय यहां के शानदार टाइगर रिजर्व का दृश्य प्रस्तुत करता है। इसके अलावा यह संग्रहालय कान्हा की रूपरेखा, क्षेत्र का वर्णन और यहां के वन्यजीवों में पाई जाने वाली विविधताओं के विषय में जानकारी प्रदान करता है।
- बामनी दादर : यह पार्क का सबसे खूबसूरत स्थान है। यहां का मनमोहक सूर्यास्त पर्यटकों को बरबस अपनी ओर खींच लेता है। घने और चारों तरफ फैले कान्हा के जंगल का विहंगम नजारा यहां से देखा जा सकता है। इस स्थान के चारों ओर हिरण, गौर, सांभर और चौसिंहा को देखा जा सकता है।
- दुर्लभ जन्तु : कान्हा में ऐसे अनेक जीव जन्तु मिल जाएंगे जो दुर्लभ हैं। उद्यान् के पूर्व कोने में पाए जाने वाला भेड़िया, चिन्कारा, भारतीय पेंगोलिन, समतल मैदानों में रहने वाला भारतीय ऊदबिलाव और भारत में पाई जाने वाली लघु बिल्ली जैसी दुर्लभ पशुओं की प्रजातियों को यहां देखा जा सकता है।
- राजा और रानी : आगन्तुकों के केन्द्र के नजदीक साल के पेड़ों के दो विशाल ठूठों को देखा जा सकता है। इन ठूठों की प्रतिदिन जंगल में पूजा की जाती है। इन्हें राजा-रानी नाम से जाना जाता है। राजा रानी नाम का यह पेड़ 2000 के बाद ठूठ में तब्दील हो गया
आवागमन :
- वायु मार्ग : कान्हा से 266 किलोमीटर दूर स्थित नागपुर में निकटतम एयरपोर्ट है। यह इंडियन एयरलाइन्स की नियमित उड़ानों से जुड़ा हुआ है। यहां से बस या टैक्सी के माध्यम से कान्हा पहुंचा जा सकता है।
- रेल मार्ग : जबलपुर रेलवे स्टेशन कान्हा पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी स्टेशन है। जबलपुर कान्हा से 175 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां से राज्य परिवहन निगम की बसों या टैक्सी से कान्हा पहुंचा जा सकता है। यदि जबलपुर पहुँचने के बाद पुनः आप रेल द्वारा यात्रा करना चाहें तो नैनपुर या चिरईडोंगरी तक आना एक अच्छा विकल्प होगा नैनपुर से कान्हा 55 व चिरईडोंगरी से मात्र 35 किलोमीटर दूर है जहाँ से लोकल बस के द्वारा असानी से पहुँच सकते हैं ।
- सड़क मार्ग : कान्हा राष्ट्रीय पार्क जबलपुर, खजुराहो, नागपुर, मुक्की और रायपुर से सड़क के माध्यम से सीधा जुड़ा हुआ है। दिल्ली से राष्ट्रीय राजमार्ग 2 से आगरा, राष्ट्रीय राजमार्ग 3 से बियवरा, राष्ट्रीय राजमार्ग 12 से भोपाल के रास्ते जबलपुर पहुंचा जा सकता है। राष्ट्रीय राजमार्ग 12अ से मांडला जिला रोड़ से कान्हा पहुंचा जा सकता है।