सतपुड़ा नेशनल पार्क : Satpura National Park

प्रमुख राष्ट्रीय उद्यान / अभ्यारण भारत के पर्यटन एवं आकर्षण

सतपुड़ा नेशनल पार्क खासतौर से बाघ संरक्षण केन्द्र के रूप में विख्यात होने को साथ-साथ विभिन्न प्रकार के जीव-जन्तुओं और पेड़-पौधों का घर है।मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले में सतपुड़ा रेंज की बीहड़ पहाड़ियों में सतपुड़ा बाघ अभयारण्य बसा हुआ है। पचमढ़ी और बोरी के वन्यजीव अभयारण्यों के साथ यह बाघ अभयारण्य 2133.30 वर्ग किमी के क्षेत्र पर फैला हुआ है। जैव सांस्कृतिक विविधता से संपन्न, इस सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना वर्ष 1981 में हुई और यहां कुछ दुर्लभ पौधे और पशु प्रजातियां पलने लगी। राज्य का महत्वपूर्ण हिल स्टेशन पचमढ़ी, इसी पचमढ़ी वन्यजीव अभयारण्य के क्षेत्र में स्थित है। मध्यप्रदेश की सबसे ऊंची चोटी धूपगढ भी (1352 मीटर) उद्यान के अंदर स्थित है। आम तौर पर पहाड़ी ढलानों वाला यह इलाका घने जंगलों के साथ गहरी और संकरी घाटियां, नालें, आश्रय घाटियों और पानी के झरनों से सजा हुआ है।

सूखे कांटेदार जंगलों से लेकर उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती, नम पर्णपाती और अर्द्ध सदाबहार जंगलों की जैव विविधता के कारण यह क्षेत्र अद्वितीय है। यहा सागौन, साल और मिश्रित वन प्रमुखता से दिखाई देते हैं। बोरी वन्यजीव अभयारण्य बांस से समृद्ध है। इस क्षेत्र में फूल और गैर-फूल के पौधों की 1200 से अधिक किस्में पाई जाती हैं। उनमें से कुछ बहुत ही दुर्लभ और विलुप्तप्राय प्रजाति है, जो केवल पचमढ़ी पठार जैसे बारहमासी धाराओं के साथ गहरी घाटियों में फैले क्षेत्र में विकसित होती है। उद्यान का क्षेत्र वन्य जीवन से समृद्ध है। बाघ अच्छी संख्या में पाये जाते है, लेकिन वह घने वन क्षेत्रों तक ही सीमित है। तेंदुए पूरे उद्यान भर में पाए जाते हैं। अन्य लुप्तप्राय प्रजातियों में भारतीय बायसन (गौर), भारतीय विशाल गिलहरी और गिरगिट पाए जाते हैं। सांभर, चीतल, चिंकारा, माऊस डीअर और भौंकनेवाले हिरण भी मौजूद हैं। अभयारण्य में नीलगाय, चौसिंघा, लंगूर, जंगली कुत्ते, सियार, लोमड़ी, जंगली बिल्ली जैसे जीव भी पाए जाते हैं। यहां अक्सर आलसी भालू और जंगली सुअर भी देखे जाते है।

अभयारण्य के जल निकाय मगरमच्छ और मछली की प्रजातीयों से समृद्ध है। इस क्षेत्र में व्यापक पक्षी जीवन मौजूद है। इन जंगली पक्षियों में बटेर, तीतर, मधुमक्खी का भक्षण करनेवाले, तोता, इग्रेट, ईगल, मैना, बुलबुल, मालाबार पाईड हॉर्नबिल और गिद्ध शामिल हैं। यहां की रंगीन तितलियां, पतिंगे और अन्य कीड़ों की विविधता भी आकर्षित कर लेती है। वन्य जीवन को देखने के लिए मडई, चूर्ण, बोरी, ढल और पारसनी क्षेत्र बेहतर रहेंगे।

पचमढ़ी पठार पर स्थित उद्यान में लड़ाई, शिकार, पशु, समारोह और लोगों के दैनिक जीवन के चित्रण वाली 130 से अधिक धूमील घुफाए हैं, जो पुरातात्वियों को आकर्षित करती है। इनमें से कुछ 10,000 से अधिक साल पुरानी होने का अनुमान हैं। यहां मंदिरों और किलेबंदी के कई खंडहर भी मौजूद हैं, जहां चौथी और पंद्रहवी सदी में गोंड जनजाति का निवास स्थान हुआ करता था। उद्यान की यात्रा करने का सबसे अच्छा समय नवंबर और जून के बीच है। मानसून के दौरान उद्यान बंद होता है।

तपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान का इतिहास :

सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान आज जिस जगह पर है उसे शुरू में बंगाल लांसर्स के कैप्टन जेम्स फोर्सिथ ने वर्ष 1862 में खोजा था। इसके बाद में जब संबंधित अधिकारियों को इस क्षेत्र की वाले हरे-भरे जंगलों के पारिस्थितिक और वाणिज्यिक मूल्य का एहसास हुआ तो उन्होंने इसे आरक्षित वन घोषित करने का निर्णय लिया। इसके बाद मध्यप्रदेश राज्य सरकार ने इसे राष्ट्रीय उद्यान और अभयारण्य के रूप में घोषित कर दिया ताकि यहां के जीवों और फूलों के संरक्षण पर ध्यान दिया जा सके। इसके बाद भारत सरकार द्वारा सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान को अपने निकटवर्ती बोरी और पंचमढ़ी अभयारण्यों के साथ मिलाकर टाइगर रिजर्व के रूप में घोषित किया कर दिया गया।

कैसे पहुंचे? :

भोपाल (210 किमी), जबलपुर (240 किमी), नागपुर (250 किमी) और छिंदवाड़ा (85 किमी) से सड़क मार्ग से इस अभयारण्य तक पहुंचना आसान है। पिपरिया (52 किमी) निकटतम रेलवे स्टेशन है और इटारसी निकटतम रेल जंक्शन है। पचमढ़ी निकटतम बस स्टैंड है और साथ ही इस अभयारण्य का प्रवेश द्वार भी है।

मडई – एक शानदार परिदृश्य :

सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान में सोनभद्र, मालिनी, देनवा और नागद्वारी नदियों के प्रवाहों के साथ साथ तवा नदी पर बना 200 चौ. किमी क्षेत्र से अधिक विस्तार वाला ‘तवा जलाशय’ यहा का मुख्य जल स्रोत है। दुर्लभ प्राकृतिक सौंदर्य और शांत वातावरण के साथ मडई वन अतिथि गृह, आराम और मनोरंजन के लिए एक शानदार जगह बनाता है। यहाँ सांभर, चीतल, हिरण, काले हिरण, लंगूर और कई तरह के अन्य जानवरों को निकटता से देखा जा सकता है। बाघ और तेंदुएं उद्यान भर में पाए जाते हैं। इस अभयारण्य में पाए जानेवाली अन्य प्रजातियों में भारतीय बायसन (गौर), भारतीय विशाल गिलहरी, गिरगिट, चिंकारा, माऊस डीअर और भौंकनेवाले हिरण, नीलगाय, चौसिंघा, सियार, आम लोमड़ी और जंगली बिल्लियां शामिल हैं। आलसी भालू और जंगली सुअर भी उद्यान में देखे जाते हैं। तवा अभयारण्य के जल निकाय मगरमच्छ और मछली प्रजातियों से समृद्ध हैं। इस क्षेत्र में व्यापक पक्षी जीवन मौजूद है। पक्षियों में जंगली मुरगे, बटेर, तीतर, मधुमक्खी भक्षक, तोते, इग्रेट, गरूड, मैना, बुलबुल, मालाबार के चितकबरी हार्नबिल और गिद्ध शामिल हैं।

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *